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मानवाधिकार की अमानवीय राजनीति

चातक
चातक
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नफरत करने के लिए कितने बहाने हैं हमारे पास, क्या कोई ऐसा बहाना नहीं जिसके जरिये हम इंसानों की इस दुनिया को थोड़ा सा इंसानों के रहने लायक भी बना सकें? बात इतनी भी मुश्किल नहीं है फिर भी हमें अपनी ही दुनिया को पेचीदा और अमानवीय बनाने में कुछ ज्यादा ही आनंद आता है, जबकि ईश्वर हर रोज हमें अपनी मंशा से अवगत कराता रहता है|


विश्व शान्ति के लिए चुनौती बन चुके आतंकवाद की जड़ें कब हमारे बीच इतनी गहरी हो गईं इस बात का हमारे नेताओं को पता ही नहीं चला| ऐसा प्रतीत होता है कि जनता के बीच जाकर आंसू बहाने और उनके दर्द में शामिल होने का ढोंग विश्व के सभी देशो में चलता रहा लेकिन ये सब कुछ सामान्यजन को सिर्फ इस बात का अहसास कराने के लिए था कि ये हमेशा से उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है और ये कोई बड़ी बात नहीं जिसपर किसी तरह के निर्णायक कारवाही की आवश्यकता हो| घडियाली आंसू बहाने वाले राजनेताओं का बड़ा वीभत्स और घृणित राजनीतिक चेहरा सामने आता है जब आतंकवाद जैसे मुद्दे पर इनकी शातिर चाल की हकीकत पता चलती है कि कितने संगठित और योजनाबद्ध तरीके से आतंक के शिकार सामान्यजन को इस प्रकार सांत्वना दी जाती है कि वे मानने लगें कि हत्या (एवं सामूहिक नरसंहार) भी स्वाभाविक रूप से मौत आने के कुछ उन तरीकों में से है जिन्हें हम दुर्घटना मान कर बर्दाश्त करने को विवश हैं| जब विश्व के बड़े राजनेता आतंकवाद को मिटाने का वादा करते हैं तो मैं उस दुनिया के बारे में सोचकर परेशान हो उठता हूँ जिसमें कहीं आतंकवाद का नामो-निशान नहीं होगा, सोचकर सिहर उठता हूँ कि दुनिया इंसानों के क़त्ल के एक तरीके से वंचित हो जायेगी, ईश्वर की कृपा से ये बातें राजनेताओं की लफ्फाजियों से अधिक कुछ नहीं है| मेरे इस विश्वास का एक पुख्ता आधार भी है जो आशा की एक किरण के रूप में टिमटिमाता रहता है- ‘मानवाधिकार’| भला हो इस मानवाधिकार का जिसने हमारे सभ्य समाज को कभी भी आतंक और अपराध से मुक्त नहीं होने देने की शपथ उठा रखी है, वर्ना भारत जैसे असहिष्णु देश में तो लोग न्यूज़ चैनलों के बंद होने के कारण आत्मदाह तक की धमकी दे डालते| भारत स्वर्ग बन जाता और भारतीय स्वर्गवासी! खैर ये कपोल कल्पना मात्र है या सिर्फ एक दुखद स्वप्न जिसका टूटना ही उसकी परिणिति है और फिर आँखे खुलते ही हम मानवाधिकार की छत्र-छाया के अनुपम अहसास में अपराधियों और आतंकियों को पूरी तरह सुरक्षित पाते हैं; एक अजीब सी तसल्ली का अहसास करते हुए करीने से चौपरते अखबार की परत-दर-परत खोलते हुए विभिन्न मानवतावादी, जिहादी, आतंकी और अपराधी लोगों की समाज के प्रति की गई सेवा का रसास्वादन करते हैं| अख़बार के कुछ हिस्सों को छोड़कर सभी पन्नों पर हमें करुण, वीभत्स, भयानक इत्यादि रसों की चटनी प्राप्त होती है इसलिए सूखी ब्रेड का नाश्ता भी सुपाच्य और तृप्तिदायक बन जाता है| इसके भी अपने राजनीतिक फायदे हैं| महंगाई और भ्रष्टाचार के मानवाधिकार नहीं होते इसलिए इनके समाप्ति के प्रयास सफल हो सकते हैं अतः इनकी और से ध्यान हटाने के लिए भी मानवाधिकार का संरक्षण पाए इन प्रतिष्ठित पेशों (अपराध/आतंक) को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, ताकि जनता महंगाई से जूझने में व्यस्त रहे और शोषक भ्रष्टाचार हटाने में यानी बिना किसी तरह के रोजगार का सृजन किये सभी को व्यस्त कर दिया और स्वयं भी मस्त हो गए|
शेष फिर कभी ….

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