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वैसे तो लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह सिर्फ प्रतीक होते हैं लेकिन कभी-कभी ये बड़े सार्थक भी सिद्ध हुए हैं; जैसे हाल में ही सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव २०१४ में! यदि गौर किया जाय तो लगता है जैसे इस बार चुनाव राजनीतिक दल लड़ रहे थे लेकिन मत और परिणाम उनके चुनाव चिन्ह के अनुसार ही आये| तो सबसे पहले प्रधानमंत्री पद के तीन बड़े दावेदारों राहुल गांधी, नरेन्द्र मोदी और केजरीवाल जी की पार्टी से शुरू करते हैं| कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा संसद से बाय-बाय (अलविदा) वाली मुद्रा में था और जनता ने उसे बाय कह दिया कांग्रेस का एक भी मंत्री नहीं कह सकता कि उनके पंजे के इशारे को जनता ने दूर तक अलविदा न कहा हो| फिर बारी आई कमल की, सभी दलों ने मिलकर अकेले कमल पर ही कीचड़ उछाले अब ये पता नहीं चल पाया है कि इन्हें इस श्रमसाध्य कार्य के लिए मनरेगा से पेमेंट मिली या नहीं, लेकिन कमल जो खिला तो पूरा हिन्दुस्तान भगवा रंग में रंग गया| फिर झाड़ू की बारी आई और जनता ने पूरी पार्टी पर ऐसी झाडू लगाई कि वंशवाद की राजनीति ख़त्म करने का दम भरने वाले कविराज ने अपने पहले इलेक्शन को ही आखिरी घोषित कर सन्यास लेने के संकेत दे दिए तो युगपुरुष केजरीवाल अपनी निम्बस २०१४ (झाड़ूकाप्टर) पर बैठकर वापस दिल्ली की गद्दी बचाने पहुँच गये, इस चुनाव चिन्ह का उन्हें व्यक्तिगत फायदा भी मिला है पुरानी झाडू की 108 परिक्रमा करके उनकी पुरानी खांसी भी काफी ठीक हो गई है|
बिहार में जे.डी.यू. का तीर तो जन्मजात उल्टा बना है इस बार इसका मुंह जनता ने सीधे सुशासन बाबू की ओर मोड़ दिया; बेचारे मोदी-गान करते-करते खुद बचे-खुचे ही बचे| गुजरातियों को 24 घंटे लाईट देने वाले नेता की तुलना में लालू की लालटेन का दम उन्हें बिहार की जनता ने समझा दिया| लोग जानते थे कि चुनाव के बाद लालू जनता को बिना तेल की लालटेन ही थमाने वाले है सो लालू को माचिस का एगो तीली नहीं मिला कि कहीं पर लालटेन जला कर फिर से चारा खा सकें|
सबसे सार्थक चुनाव चिन्ह रहा सपा की सायकिल और बसपा का हाथी| जनता जानती है कि कमल की खुशबू हवाओं में तैर रही हो तो किसी भी हवाई जहाज को मात दे देगी और पिता-पुत्र चाहे जितना दम लगायें उनकी सायकिल बिना चालीस बार पूरी ओवरहालिंग के लखनऊ से दिल्ली नहीं पहुँच सकती सो अपने चहेते धरतीपुत्र की सायकिल के दोनों पहिये ही निकाल लिए| सबसे कमाल का चुनाव चिन्ह रहा बसपा का हाथी, सोशल-इंजीनियरिंग का ये स्वयंभू वाहक कब जेनेटिक इंजीनियरिंग का अजूबा बन कर अन्डे देने लगा खुद मायावती को पता नहीं चला, वैसे सोशल मीडिया के सूत्रों से पता चला है कि इस विषय पर डिस्कवरी चैनल और नेशनल जियोग्राफी ने शोध शुरू कर दिया है जबकि मायावती का कहना है कि पूरी दुनिया में ऐसा सिर्फ उनके हाथी ने किया है और अन्डे देने वाले इस हाथी पर सिर्फ दलितों का अधिकार है वैसे इसका पेटेन्ट हमेशा की तरह मायावती जी के नाम पर ही रहेगा न कि दलितों के|
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