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असुरक्षित राजधानी, सो रहे हैं अखिलेश यादव !

चातक
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काफी दिनों बाद लखनऊ जाना हुआ और संयोग से सिटी-बस से सफ़र भी करना पड़ा लेकिन ये अनुभव पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के शासन काल से बिलकुल उल्टा था मुझे याद है कि पिछली  बार जब मैं सिटी बस में चढ़ा था तो मुझे पूरा सफ़र खड़े-खड़े तय करना पड़ा था लेकिन ये देखकर ख़ुशी हुई थी बस में महिलाओं का केबिन अलग था और बीच में जाली थी पुरुष यात्री किसी भी तरह न तो किसी महिला तक पहुँच सकते थे न आगे के दरवाजे से बस में घुस सकते थे|
परन्तु पिछले सप्ताह जब मैं बस में दाखिल हुआ तो ये देख कर दंग रह गया कि महिलाओं के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी हर जगह पुरुष यात्री घुसे पड़े थे और जितने भी लफंगे थे वो महिलाओं और बच्चियों को घेरे हुए थे| खैर पहले दिन के सफ़र में इतने पर ही ध्यान गया | सुबह जब अखबार उठाया तो देखा पोलिटेक्निक चौराहे से जिस जगह से मैंने बस पकड़ी थी उसी जगह से शाम को कुछ लोगों ने एक लड़की को वैगेनार गाडी में खींच लिया| संयोग से वहां पर मौजूद कुछ राहगीरों ने ये देखा और पुलिस को फोन किया जिससे गाजीपुर थाने पर उक्त गाडी को रोका गया और लड़की बच गई (नवभारत टाइम्स, लखनऊ, २७/०९/२०१३)|
कुछ दिनों बाद मैं फिर उसी जगह पहुँच गया और इस बार का अनुभव पहले से भी बदतर था शाम ४ बजे के बाद पालीटेक्निक पर भीड़ से भरी बसें आ रही थी जिसमे बड़ी मुश्किल से यात्री चढ़ पा रहे थे छात्राओं के लिए तो ख़ास मुश्किल थी तभी मैंने देखा एक लड़की जो शायद कहीं पढ़ाती होगी एक ऑटो से उतरी और किनारे खड़ी होकर वही पर बस का इंतज़ार करने लगी जहां मैं खड़ा था अभी २ मिनट ही बीते होंगे तब तक बस आई और लड़की उसपर चढ़ी संयोंग से आगे सीट खाली थी और बह वहीं बैठ गई जैसे ही मैंने बस में बैठने के लिए कदम बढाया बस से आगे निकल रही एक ऑटो को अचानक रुकवा कर दो लड़के भागते हुए पीछे के दरवाजे से घुसे और उसी लड़की के ठीक बगल वाली सीट पर बैठ गए| बस चल पड़ी और मैंने महसूस किया कि वो लड़की थोडा डरी हुई थी जबकि दोनों लड़के बड़ी विचित्र सी नज़रों से उसे घूर रहे थे| लड़की ने कई बार किसी को फोन लगाने की कोशिश की लेकिन शायद लगा नहीं या उठा नहीं, अब उसके चेहरे पर डर साफ़ झलक रहा था| चारबाग पहुँच कर वो लड़की जल्दी से बस से उतरी और इसी के साथ वो लड़के (जो निश्चित रूप से उसका पीछा कर रहे थे) उतर गए| मैं अब स्पष्ट देख सकता था कि लड़की का डर हद से ज्यादा था वो घबरा कर फिर से बस में चढ़ी और अब मुझे कोई संदेह नहीं रह गया कि उसे लगातार मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा था क्योंकि अगले ही पल वो दोनों लड़के भी वापस बस में आ गए| बस आगे चल पड़ी| मैं जब आलमबाग बस स्टॉप पर उतरा तो मैं स्पष्ट रूप से देख सकता था कि लड़की हद से ज्यादा परेशान हो चुकी थी अब वो फिर अपने मोबाइल से किसी को फोन कर रही थी और शायद फिर फोन नहीं उठा……………
मैं तो बस छोड़ चुका था लेकिन मेरे मन में उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार की एक बेहद घिनौनी तस्वीर अंकित हो चुकी थी जिसमे हर तरह के गंदे रंग अखिलेश यादव की सरकार ने भर रखे हैं|
अखिलेश यदि शासन नहीं कर सकते यदि महिलाओं को राजधानी में ही सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते तो उन्हें स्वयं प्रदेश की बागडोर मायावती जैसे किसी अच्छे शासक को सौंप देनी चाहिए इससे उनका सम्मान भी बना रहेगा और वे स्वयं एक मिसाल बन सकते हैं| यदि वो स्वयं तनिक भी लायक हैं तो कम-से-कम राजधानी की बसों और सड़कों को तो महिलाओं और बच्चियों के लिए भयमुक्त करें!

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