चातक
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बस एक बार दस्तक तो दो- मैं सुन लूँगा,
सुर्ख होठों को एक हरकत तो दो- मैं सुन लूँगा !
जिन्दगी से एक शिकायत सी है- धुल जायेगी,
मन में एक गाँठ सी है- खुल जायेगी।
अपनी पलकों को एक जुम्बिश तो दो- मैं सुन लूँगा,
सुर्ख होठों को एक हरकत तो दो- मैं सुन लूँगा !
थमा थमा सा एक मंजर है- उतर कर देखो,
जमा सा शोख एक पहर है- संवर कर देखो।
ये दो आँखें तुम्हारा आईना बनने तो दो- मैं सुन लूँगा,
सुर्ख होठों को एक हरकत तो दो- मैं सुन लूँगा !
आपके कदमो की आहट है- यकीं है,
कोई शुबहा, ना भरम है- यकीं है।
आती हुई हवाओं को बस छू तो दो- मैं सुन लूँगा,
सुर्ख होठों को एक हरकत तो दो- मैं सुन लूँगा !
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