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सही कहूं तो मुझे हमेशा से ही हिन्दुस्तान के दो बहुचर्चित युवराजों की काबिलियत पर शक था और अब मेरा शक सही भी साबित हो चुका है | पहले युवराज हैं कांग्रेसी खानदान के राहुल गांधी जिनपर फिलहाल मैं कुछ लिखने के मूड में नहीं हूँ और दूसरे हैं सामाजवादी खानदान के अखिलेश यादव एक पैदाइशी नेता, मैं आज इन्ही के बारे में थोड़ी राग-दरबारी गाना चाहता हूँ | अखिलेश जी जब मुख्यमंत्री जी बने तो सभी खबरिया चैनलों ने मध्ययुगीन भाट कवियों की तरह वीर-रस रूपी चाटुकारी गायन शुरू कर दिया | अखिलेश जी के स्कूल से लेकर कालेज तक की सारी रिपोर्टिंग ऐसे हुई जैसे इनसे ज्यादा मेधावी और होनहार बालक कभी पैदा ही नहीं हुआ | जिन अध्यापकों और प्रोफेसरों का साक्षात्कार किया गया किसी की हिम्मत नहीं हुई कि ये बताता कि महोदय ‘दिन भर पढ़ा, सवेरे सफा’ वाले अग्रिम-पंक्ति छात्र थे | खैर ‘प्रतिभा’ छुपाये भी छुपती कहाँ है? गद्दी-नशीन होते ही महोदय (माननीय) ने पहली बार मुंह खोला और ‘विधायको को विधायक-निधि से कार खरीदने की सुविधा’ प्रदान कर दी | जनता समझ गई नौसिखिया है क्योंकि विधायक निधि से तो सिर्फ लक्जरी गाड़ियाँ ही खरीदी जाती हैं या काम के नाम पर कमीशन खाया जाता है वो भी बिना बताये| फिर इसे बता कर आरोप लेने की जरूरत क्या है| विपक्ष ने लपक लिया और खटिया खड़ी हो गई, चौबीस घंटे में पहला फैसला उलटे मुंह वापस हो गया|
कुछ ही दिनों में पूरा प्रदेश अपराधों की चपेट में आ गया हलाकि इसकी बानगी तो पहले दिन ही सपाइयों द्वारा पुलिस की पिटाई से हो चुकी थी| रिकार्ड तो तब कायम हो गया जब एक जज पर बलात्कार पीडिता से अश्लील हरकत करने का मामला उछला और चपेट में आ गया गोंडा का पूरा पुलिस और न्याय महकमा|
अपनी स्मरण शक्ति का लोहा तो युवा मुख्यमत्री ने तब मनवा लिया जब उन्होंने हाल में ही (बमुश्किल २० दिन पहले) हुए स्टिंग आपरेशन को ‘माया-राज’ में हुआ काण्ड कहते हुए, पशु तस्करी के मुख्य आरोपी को मंत्री का कैडर प्रदान किया और उसे क्लीन-चिट पकड़ा दी| जनता अभी इसे चाटुकारों की हरकत मानकर मुख्यमंत्री को मासूम मानने की गलतफहमी पालने की कोशिश कर ही रही थी तब तक स्वयं मुख्यमंत्री ने कमान सँभालते हुए उन एस.पी. महोदय का ही तबादला कर दिया जिन्होंने पशु-तस्कर को बेनकाब कर क़ानून के कमजोर पंजों में जकड़ने की कवायद की थी| कोई आश्चर्य नहीं कि कल की खबर में तबादले का कारण जज साहब के विरुद्ध हुई कथित साजिश के कारण उनके तबादले को जांच कमेटी की सिफारिश बताया जाएगा ना कि वह समाजवादी सुरक्षाकवच जिससे आज उत्तर-प्रदेश का हर सपाई नेता और कार्यकर्ता संरक्षित है|
जिस तरह राजनीतिक परिवार-वाद ने अब नस्ल-दर-नस्ल विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधान-मंत्री पैदा करने शुरू कर दिए हैं वह देश और लोकतंत्र की आत्मा को लहूलुहान करके अस्थिरता और अराजकता की ओर जाते देश की तस्वीर सामने ला रहा है|
जिस तरह से अखिलेश जी को हर मामले पर ‘मायावती राज में हुआ था’ कहने की आदत पड़ चुकी है वह प्रदेश के लिए चिंताजनक है| ये मानसिकता है पाकिस्तानी हुक्मरानों की जो अपने देश में हुए किसी भी गलत कार्य को ‘हिदुस्तान की साजिश’ कहकर पकिस्तान की जनता को गुमराह करते है और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड लेते हैं| इनके बयान देखकर तो कांग्रेस को दिग्विजय सिंह की याद आ जाती है जिन्हें किसी भी घटना और दुर्घटना के पीछे आर.एस.एस. और भगवा आतंकवाद दिखाई देता है| इस तरह की मानसिकता को युवा राजनीति नहीं कह सकते हैं बल्कि इसे फोबिया कहा जाएगा ‘माया फोबिया’| अच्छा होता कि अखिलेश जी उत्तर प्रदेश को उस राजनीतिक ताजगी का अहसास कराते जो आज देश की जरूरत है लेकिन उन्होंने अपराधियों को समर्थन और संरक्षण प्रदान करके सिद्ध कर दिया है कि वो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कठपुतली परंपरा के युवा अधिकारी के सिवाय और कुछ नहीं|
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