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हतप्रभ हूँ, परेशान हूँ, रुदन करना चाहता हूँ, शर्मिन्दा हूँ सिर्फ इसलिए कि मेरा जन्म हिन्दुस्तान में हुआ। दुनिया का ये पहला और एकलौता देश है जहाँ न्यायाधीशों ने भरी अदालत में बैठकर न्याय का सामूहिक बलात्कार कर डाला। कोई इस देश का नाम गिनीज वर्ल्ड बुक में दर्ज कराओ रे! यहाँ जघन्य बलात्कारियों को दो कौड़ी के सर्टीफिकेट पर लिखी तारीख के आधार पर मासूम करार दे दिया गया। अरे, अकल के अंधे एक बार तो सोचा होता कि मासूम किसे कहा जाता है! मासूम कहा जाता है उस लड़की को जिसे नहीं मालूम था कि बलात्कारियों के देश में देर रात को फिल्म देखने नहीं जाया करते, जिसे नहीं पता था कि सारे पुरुष दोस्त मर्द नहीं होते, जिसे नहीं पता था कि दिल्ली जैसी बलात्कारी बस्ती में सिर्फ अस्मत नहीं लूटी जाती बल्कि यहाँ घूमने वाले नाबालिग शरीर में लोहे की सलाख डालकर आंतें बाहर खींच लेते हैं, जिसे नहीं पता था कि यहाँ ऐसे दुर्दांत बलात्कारी अधिवक्ता हैं जो सभी बालिग़ और नाबालिग बलात्कारियों को सड़े-गले कानूनों की तिकड़म से नाबालिग साबित करते रहेंगे जब तक स्वयं उनकी बेटियों और बहनों से बलात्कार ना हो और उनकी आंतें निकाल कर न फेंक दी जाएँ।
मासूमियत की अगर वह परिभाषा है जो बलात्कारी अदालत ने दी है तो आज का दिन उस दिन से ज्यादा काला है जिस दिन मासूम लड़की के साथ दुष्कर्म हुआ था। आज हिन्दुस्तान की न्याय व्यवस्था का सबसे गन्दा और काला दिन है। इन अनपढ़ और बदक्ल न्यायाधीशों को तनिक भी तमीज नहीं है न्याय करने की, और ये दुहाई देते हैं क़ानून की कमी की। अगर यही फैसला करना न्याय करना है तो मैं चुनौती देता हूँ इस न्याय-व्यवस्था को और न्यायाधीशों पर किये जाने वाले नाजायज खर्च को! इनसे बेहतर न्याय एक मशीन कर सकती है अगर उसमे जुर्म और उससे सम्बंधित सजाओं का ब्यौरा भर दिया जाय। यदि न्याय सिर्फ और सिर्फ कानून की किताबों में लिखी धाराओं पर संभव होता तो न्यायालय में किसी जज की जरूरत नहीं थी; एक मशीन इन बेवक़ूफ़ जजों से जल्दी और बेहतर न्याय / फैसले दे सकती थी, फिर इन न्यायाधीशों की नियुक्ति क्यों? इसलिए क्योंकि मशीन मानवीय अहसासों को नहीं समझ सकती, एक जैसे ही दो अपराधो के बीच विभेद नहीं कर सकती, जबकि एक से दिखने वाले दो अपराधों में जमीन आसमान का अंतर होता है। लेकिन आज का फैसला इन न्यायाधीशों की अक्षमता पर मुहर लगा चुका है। एक आसान से केस का फैसला भी सही न दे सकने वाले जज पर आज पूरा हिन्दुस्तान शर्मसार है। नक़ल करके डिग्री और रिश्वत दे कर जज बनने वाले ये लोग न्याय क्या ख़ाक देंगे! ये न्यायाधीश तो नेताओं के भी बाप निकले!
अरे तुम्हें क़ानून की व्याख्या करनी नहीं आती है तो हट जाते उस केस से कमसे कम अन्याय तो न करते! एक डाक्टर जब किसी रोग का इलाज नहीं कर पाता है तो वह विशेषज्ञों की सलाह लेता है और तब भी नहीं कर पाता है तो उसे किसी बेहतर डाक्टर को रेफर करता है लेकिन इस नीम हकीम ने खुद तो क़ानून की पढाई की नहीं और किसी से पूछा भी नहीं। मैं नहीं मान सकता कि हिन्दुस्तान के सभी न्यायाधीश इतने अक्षम है कि वे ‘बाल-अपराध’ और ‘नाबालिग’ शब्द की कानूनी व्याख्या तक नहीं कर सकते। और यदि इनकी क्षमता इतनी खराब है तो मैं चुनौती देता हूँ उन सभी न्यायधीशों को (जो मान बैठे हैं कि इस केस में नाबालिग की वही व्याख्या होगी जो आज उस गंवार जज ने की है) कि हमारे कानून के अनुसार व्याख्या नहीं की गई है और गलत तरीके से अपराधी को संरक्षण दिया जा रहा है। आज हर हिन्दुस्तानी का विश्वास न्याय से उठ चुका है देखो न्याधीशों आज हुए इस अन्याय से आसमान फट चुका है, जमीन रो रही है, हमारी आत्माएं तुम्हें श्राप दे रही है, हर माँ, हर बहन, हर बेटी तुम्हें और तुम्हारे उस परिवार को बददुवायें दे रही हैं जिसे तुम एक मासूम के खून से सनी अन्याय की रोटियाँ खिल रहे हो! काश कि तुमने ढंग से कानून की पढाई की होती, तो तुम आज न्याय कर पाते, काश उन अधिवक्ताओं ने जो बलात्कारियों का केस लड़ रहे है एक बार ये अपराध अपने घर की किसी स्त्री के साथ होते महसूस किया होता, काश हमारे देश की अदालतों में कुछ ईमानदार और चरित्रवान न्यायाधीश भी होते!
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