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न्यायालय कब इतिहास रचेगा?

चातक
चातक
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राजनीतिक अपराधीकरण, तुष्टिकरण, आरक्षण, भ्रष्टाचार, और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने वाले हर रोज़ नया इतिहास लिख रहे हैं| अपराधी अपनी पहुँच और ताकत का इस्तेमाल करके आज बड़ा और ताकतवर अपराधी नेता बन चुका है जिसके सामने नतमस्तक दलाल मीडिया सिर्फ उसे बाहुबली नेता कहकर अपना पल्ला झाड लेती है| तुष्टिकरण आज राजनीति में सफल होने के सबसे बड़े मन्त्र के रूप में अपनी पहचान बना चुका है इसी की बदौलत ओबीसी जैसे लोग अब खुलेआम हिन्दुस्तान के लोकतंत्र को चुनौती दे रहे हैं और हिन्दुस्तान की कोख में ना जाने कितने ‘छोटे पाकिस्तान’ पल रहे हैं कतिपय राजनीतिक दल तो इसकी बदौलत साँसें ले रहे हैं अन्यथा हिन्दुस्तान और राजनीति के वास्तविक रूप की इसकी शुचिता के बारे में कुछ भी न जानने वाले मुख्यमंत्री तो क्या किसी शहर के वार्ड मेंबर तक ना चुने जाते| आरक्षण हमारी जड़ों का कितना खोखला बना चुकी हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार और छुट्टी को छोड़कर कोई दूसरा काम नहीं होता, समाज में अब इंसान नही सिर्फ और सिर्फ जाति देखी जाती है एक सवर्ण आरक्षितों के लिए मुसीबत और शोषक है तो आरक्षित सवर्णों के लिए उनका हक़ खाने वाले मुर्दखोर| बच्चे से जन्म से लेकर आदमी की मृत्यु तक कुल रिश्वत की राशि आज आदमी की ८० वर्षो की जायज जरूरतों के खर्च २ से ३ गुना तक ज्यादा है| बलात्कार के आंकड़े नहीं उसके तरीके और बर्बरता इंसान के जेहन को तीरों की तरह हर रोज़ छेदते रहते हैं| हर जघन्य अपराध हर रोज नए मुकाम हासिल कर रहा हो कल जिस बर्बरता से एक गुनाह हुआ था उससे ज्यादा बर्बर और संगीन गुनाह कल के अखबार में मिलता है| नया घाव मिलते ही पुराने का दर्द कम होने लगता है हिन्दुस्तानियों का नहीं हिन्दुस्तान की संवेदनहीन राजनीति का, न्याय का, प्रशासन और सबसे पहले मीडिया का|
जब इतना सबकुछ हो रहा है तो फिर न्यायालय क्यों सो रहा है अपराधों का इतिहास रचने वालों से कुछ तो बेहतर होने चाहियें न्यायाधीश! अपराधियों से कुछ कदम आगे की सोच तो होनी चाहिए इनके पास! क्यों नहीं रचते एक न्याय का इतिहास? क्यों नहीं रखते ताक पर वो काला चोंगा? क्यों नहीं अदालत के दरवाज़े बंद करके अपराधियों के शरीर में सलाखें डाल दी जातीं? क्यों नहीं एक न्यायाधीश अपनी ‘नौकरी’ का मोह छोड़कर घसीट लाता बलात्कारी को चौराहे पर और जिन्दा दाह करवाता बलात्कारी का?
क्यों नहीं रचता है न्यायालय इतिहास??????

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