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समस्या

चातक
चातक
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पूरा देश इस समय समस्यों की चपेट में है। सरकारी लूटतंत्र देश को खोखला बना रहा है तो न्याय और क़ानून व्यवस्था आम आदमी के दिलो-दिमाग को। समाजवादी पार्टी की सरकार तो उत्तर-प्रदेश के गली-मोहल्लों तक को गुडों और मवालियों का अभयारण्य बना चुकी है। प्रतिष्ठित कुल और रसूखदार लोगों से लेकर गली के आवारा सुप्त मवाली तक अचानक सीतनिद्रा से बाहर निकल आये हैं। स्वानों की घ्राण-शक्ति ने मानो रातो-रात बदली हुई सपाई हवाओं महसूस कर लिया है।
आज हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि आम आदमी न तो अपने घर में सुरक्षित है और न ही कार्यस्थल पर, जहाँ वह सम्मानपूर्वक अपने जीवन को जी सके। ऐसे में दो रास्ते बचते हैं-

पहला – गुंडा टैक्स दो, गलियां और बेज्जती सहो और जिन्दा रहो इस उम्मीद के साथ कि अगली सरकार शायद ये न हो।

दूसरा- क़ानून व्यवस्था जो कि मवालियो की संरक्षक और नेताओं की चेरी बन चुकी हैं (या फिर धनलिप्सा में अंधी और बहरी; गूंगी नहीं कह सकते क्योंकि) शासन की तनिक सी भी चुटकी बज जाए तो इनके मुंह से जो देशी फूल झड़ते हैं, लगता है, अपने बाप के जनाजे पर बिछा रहे हैं। सुनने वाले तो वहीँ का वहीँ इनके इस रुदन से कृतार्थ हो जाता है।

चुनाव के समय नेता जिस रूप में दिखते हैं वह नयनाभिराम छवि वोटों की गिनती ख़त्म होने के साथ ही काफूर हो जाती है। जनसेवी का चोंगा गायब हो जाता है और शासन सत्ता की हनक और ठसक देखकर तो करीना और लियोने दोनों पूरे कपडे पहनने पर मजबूर हो जाएँ।

ऐसी दशा में आम आदमी क्या करे? शर्माए तो नामर्द और सीटी बजाये तो लम्पट। हर बात के लिए अदालत जाकर एक नया मुकदमा लड़ने की औकात तो अब रजवाड़ों की नहीं रही, पुलिस जैसी कोई चीज़ पाई नहीं जाती। मुख्यमंत्री से लेकर वार्ड मेंबर तक चक्कर काटने से पेट नहीं भरता। अखिलेश जनता दरबार लगाते जरूर हैं लेकिन सिर्फ जनता को दर्शन देने के लिए न तो उन्हें कुछ सुनाई देता है न समझ में आता है टी. ई. टी. अभ्यर्थी उनके दरबार में माथा फोड़ के आ चुके हैं बेचारे चक्कर ही काटते रह गए चढ़ावे वाले बॉक्स का दरवाजा तक नहीं खोज पाए। नंगे-भिखमंगे बेरोजगार बड़ी पूजा चढ़ा ही न पाते सो पूरी ईमानदारी से उनको परिक्रमा के बाद भभूति देकर विदा कर दिया गया- “जाओ वत्स फिर से फारम भरो, हमारी गोरमिंट का फारम भरने से सबको कुछ न कुछ तो जरूर मिलेगा कहाँ अछूत गोरमिंट का अछूत फ़रम भर के चले आये?”

सुना था विद्वानों के पास हर समस्या का हल होता है लेकिन ये समस्या तो उनके दांतों से भी नहीं फूटती।

अब क्या आदरणीय मुख्यमंत्री जी डैडी से पूछकर बताएँगे इस समस्या का हल? समाजवादी व्यवस्था में क्या उन नागरिकों के लिए भी कोई जवाबदेही, कोई क़ानून, कोई न्याय, कोई शासन व्यवस्था है जिन्होंने अच्छे नागरिक होने का हर फ़र्ज़ निभाया और अब जिल्लतें उठाकर जीना ही जिनकी नियति बन गई है।?

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