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बस एक प्रतिबन्ध

चातक
चातक
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समाजवादी सुरंग से होकर कांग्रेसी स्वर्ण-महल में दाखिला पा चुके वर्तमान इस्पात मंत्री बेनी बाबू ने (पता नहीं किधर से खाकर मुंह से) अंट-शंट निकालने वाले जन्मजात कांग्रेसियों के भी कान काट लिए हैं। मंत्री हैं किधर से भी खा कर किधर से भी कुछ भी निकाल सकते हैं; आखिर जनता ने चुनकर (भेजा है जानकर) भेजा है, इसलिए यहाँ मैं बेनी बाबू की जमीनी सोच पर कोई टिप्पड़ी नहीं करना चाहूँगा।


मैं लोगों की उस पीड़ा का उपचार चाह रहा हूँ जो इनके जैसे चुने गए नेताओं द्वारा जनता को मुफ्त बांटी जाती है।


बेनी बाबू- गोंडा संसदीय क्षेत्र से चुने गए हैं (मेरे वोट का कसूर नहीं है), सिर्फ इसलिए कि इन्होने स्वयं को विकासपुरुष के रूप में प्रचारित किया था। चुनाव जीतने के बाद जिले में कभी उन्होंने न खुद दर्शन दिया न जनता का दर्शन किया।


विकास- इन्होने इतना किया कि गोंडा की सीवर योजना जो चुनाव से पहले अमली जामा पहनने वाली ही थी न जाने कहाँ गुम हो गई। इनके सांसद बनने के बाद से गोंडा लखनऊ मार्ग पर कोई दुर्घटना नहीं हुई, कारण है- रोड पर सबसे तेज सिर्फ सायकिल चल सकती है (मुलायम की नहीं लोगों की)। मोटर गाड़ियाँ तो उखड़ी हुई पटरियों पर रेंगती हैं।
गोंडा मुख्यालय को बालपुर कसबे में बना एकमात्र टिहरी पुल (ज्यादा बड़ा नहीं कुछ २०-३० मीटर का होगा) राजधानी से जोड़ता है और ये १ वर्ष से बंद है और विकास का राग आलापने वाले बेनी बाबू को खबर तक नहीं है।


जोड़-तोड़- इनकी एक उपलब्धि (सेवा भी कह सकते हैं) काबिले-तारीफ़ है। गलती से गोंडा को श्री राम बहादुर जी के रूप में एक बेहतरीन जिलाधिकारी मिल गया था। उन्हें इन मंत्री महोदय ने सपा नेताओं से सांठ-गाँठ कर विधान सभा चुनावों से ठीक पहले चलता कर दिया। यानी एक मात्र जनसेवक जो गोंडा की जनता के लिए २४ घंटे अपना मोबाइल ऑन किये उपलब्ध रहता था उसके शिकार का सेहरा जरूर इनके सर पर है।


गुणों की खान- कहने का आशय बेनी बाबू की नकारात्मक सोच सामने लाना नहीं है सिर्फ इनके कुछ गुणों पर प्रकाश डालना है ताकि बड़ी घटना समझने में पाठकों/ब्लागरों को सुविधा हो।


स्मरण शक्ति- इनकी भलमनसाहत के कार्यों को देख-सुन रही जनता इनकी आरती उतारने को बेताब थी लेकिन बाबूजी अपने संसदीय क्षेत्र की राह तो क्या उसका नाम तक भूल चुके थे। इस बात का खुलासा तब हुआ जब अन्ना हजारे जी को चुनौती देते हुए इन्होने पत्रकारों से कहा- “यदि हिम्मत है तो अन्ना मेरे संसदीय क्षेत्र ‘कैसरगंज’ से मेरे विरुद्ध चुनाव लड़कर दिखाएँ।”
अन्ना जी ने तो इनकी बात पर गौर नहीं किया लेकिन गोंडा की जनता ने इनकी याददाश्त के लिए फूल-मालाएं इकट्ठी करनी जरूर शुरू कर दीं। लेकिन बाबूजी मिलें तब न!


बाबूजी की आरती- खैर, घूरे के भी दिन बहुरते हैं। सोनिया माता का कार्यक्रम गोंडा में लगा। अब बाबूजी कहाँ जाते? लेकिन निकले गाँठ के पूरे पक्के, सोनिया माता के साथ ही सीधे मंच पर प्रकट हुए। ९०% किसानों वाली गोंडा की खालिश अवधी जनता ने पूरे पांच मिनट तक किसी महिला के सामने बदजुबानी ना करने के प्राण को निभाया, तब तक किसी एक का धैर्य जवाब दे गया, और फिर अगले ही पल दसियों हज़ार ग्रामीण और शहरी, शाकाहारी और मांसाहारी मिश्रित आरती कोरस में गाने लगे। कुछ चरण पादुकाएं भी लहराईं लेकिन वहां मौजूद प्रबुद्ध और बुजुर्ग लोगों ने मंच पर महिला के होने और गोंडा-वासियों के पादुका-प्रक्षेपण में अच्छा निशाना न होने की दुहाई देकर आरती कार्यक्रम के विशेष चढ़ावे के प्रयोग को कुछ समय के लिए रोक सा दिया। अभी कुछ नौजवान पादुका-प्रक्षेपण कौशल में प्रवीण होने की शपथ उठा ही रहे थे कि सोनिया माता ने स्थिति को भांपते हुए बेनी बाबू को मंच से ही उतार दिया। सोनिया माता का तो काम हो गया लेकिन उन बेचारे बुजुर्गों का क्या जिनके सर पर हाथ रखकर नवयुवक अपने सच्चे निशाने की शपथ उठा चुके थे?


बस एक प्रतिबन्ध- आयातित संविधान का बोझ ढ़ोने को मजबूर जनता न जाने कितने ऐसे प्रतिबन्ध झेलती है जो ना तो मैं बयान कर पाऊंगा और ना ब्लॉगर बंधु सुन पायेंगे इसीलिए मैं बहुत ही गंभीरता-पूर्वक हिन्दुस्तान के चुनाव आयोग से ये गुजारिश/सिफारिश/फ़रियाद करता हूँ कि वह चुने गए विधायकों/सांसदों पर ये प्रतिबन्ध लगाए कि एक बार विजयी होने के बाद विधायक/सांसद सिर्फ उसी क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं जहाँ की जनता ने उन्हें चुना था। जब तक वे चुनाव जीतते रहें उन्हें अपना चुनाव क्षेत्र बदलने की इजाजत कतई न दी जाए।


राईट टू रिकाल ना दीजिये तो कम-से-कम दोबारा आरती उतारने का मौका तो दीजिये।

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