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सेकुलर राजा जयचंद

चातक
चातक
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ये घटना काफी पुरानी है लेकिन ज्यादातर लोगों को मालूम है इसलिए मुझे बहुत गहराई में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे तो इस कहानी को दोहराने की जरूरत नहीं होनी चाहिए लेकिन सेकुलराई का कीड़ा जब किसी के दिमाग में घुस जाता है तो ये किसी दीमक की तरह धर्म और राष्ट्रवाद दोनों को एक साथ चाट जाता है, इसलिए इसे पेस्टीसाइड की तरह दोहराते रहना चाहिए ताकि जो मस्तिष्क अभी तक इन कीड़ों के चपेट में नहीं आये हैं वे बचे रहें।
पूर्व ज्ञात है कि राजा पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को कई बार (मान्यता तो ये है कि १६ बार) पारित किया और हर बार उसने ये कसम खाई कि वह अब कभी दिल्ली की और आँख उठा कर नहीं देखेगा। उसकी कसम पर हर बार ऐतबार करके राजा पृथ्वीराज ने उसे मुक्त कर दिया। पृथ्वीराज हर बार आक्रमण को नाकाम करता रहा लेकिन जयचंद जिसकी पुत्री संयोगिता से उसने प्रेमविवाह किया था अपने विद्वेष के कारण सेकुलर हो गया उसके दिलो-दिमाग में अपने दामाद के लिए घृणा और मुहम्मद गौरी के लिए प्रेम दिनों-दिन परवान चढ़ता गया। यही सेकुलाराई (गैरों पे करम अपनों पे सितम) पृथ्वीराज की हार का कारण बनी। अब पृथ्वीराज  गौरी के सामने बंदी के रूप में पेश किया गया। गौरी ने कोई रहम नहीं किया वह पृथ्वीराज को बंदी बनाकर अफगानिस्तान ले गया जहाँ उसे हर तरह की अमानवीय यातना दी गई, गर्म सलाखों से उसकी आँखें फोड़ दी गई और हर रोज उसे दरबार में लाकर अपमानित किया जाता था। ये सारी देन सेकुलाराई के मद में चूर राजा जयचंद की थी जो स्वयं मुहम्मद गौरी के हाथो मारा गया। मरते समय जब जयचंद ने सेकुलर दोस्ती की दुहाई दी तो गौरी का जवाब था- तू जब अपनी कौम का ना हुआ, तूने जब अपनी सगी बेटी के सुहाग को उजाड़ने में रहम नहीं किया तो तू मेरा क्या होगा!
ज़माना गुजर चुका है लेकिन घात और प्रतिघात आज भी कायम है हथियार बदल चुके हैं लेकिन सत्ता के लिए आज भी वही संघर्ष है जिसमे हिन्दुस्तानी सेकुलर और कम्युनल बनकर अपनों से ही घात और प्रतिघात कर रहे है। ना जाने कब सुधरेंगे ये सेकुलर जयचंद, ना जाने कब इनमे इतना साहस आएगा कि ये अपने ही घर में आग लगाने से बाज़ आयेंगे पडोसी से सांठ-गाँठ करके अपने भाई की हत्या का इनका शौक न जाने कब ख़त्म होगा।

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