गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जो अपनी बेबाक राय, स्पष्ट नीति और कठोर निर्णयों के लिए जाने जाते हैं आज राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन चुके हैं। गैर भाजपा दलों की बात करना ठीक नहीं होगा सिर्फ एन.डी. ए. के विभिन्न घटक दलों और भाजपा के जंग-लगे लेकिन सत्ता की आस में लार टपकाने वाले पदाधिकारियों की बात करें। प्रथम दृष्टतयः सभी के घुटने कांपते नज़र आ रहे हैं। नितीश कुमार का कम्पन तो इस कदर बढ़ चुका है कि घुटनों में मंजीरे बाँध दो तो पूरे हिन्दुतान में सेकुलर कीर्तन करने को वाद्य यंत्रों की जरूरत नहीं पड़ेगी। मोदी के विरोधियों की सूची इतनी लम्बी है कि सिर्फ नाम लिखूं तो एक छोटा ब्लॉग बन जाए। लेकिन मोदी के समर्थकों का नाम लिखूंगा कम से कम एक अरब नाम लिखने पड़ेंगे। मेरे विचार से इतना लिखने के बाद मैं सर्वाधिक ब्लॉग लिखने का वर्ल्ड रिकार्ड बना लूँगा ! मोदी के पक्ष और विपक्ष में काफी कुछ तर्क-वितर्क हो चुके हैं इसलिए उनका दोहराव करना तर्कसंगत नहीं होगा, लेकिन एक बात है जो बार-बार खटकती है इसलिए मैं प्रबुद्धजनो का ध्यान इस और भी आकृष्ट करना चाहूंगा- आज़ादी मिलने के बाद भी कुछ ऐसी ही चर्चा प्रधानमन्त्री पद की दावेदारी पर हुई थी और आज सारे हिन्दुस्तानी इस बात का रोना रोते हैं कि प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल की जगह सरदार पटेल होते तो हिन्दुस्तान की तस्वीर आज कुछ और होती! एक लम्बा अरसा गुजर जाने के बाद सरदार पटेल जैसी शख्शियत फिर राजीतिक गलियारों में एक सिंह की तरह चहलकदमी करती नज़र आ रही है और गीदड़ों का वही १९४७ वाला राग फिर से गूंजने लगा है। तथाकथित बुद्धिजीवी जो कम्मुनिज्म और सेकुलरिज्म की बात करते हैं वो ये भूल जाते हैं कि ऐसे ही विद्वानों की विद्वता विभाजन का कारण भी थी और नेहरु के प्रधानमंत्री बनने का भी। ये ऐसे लोग हैं जो या तो कुछ जानते नहीं या फिर जानकर भी मानते नहीं। यही दुर्भाग्य रहा है इस देश का। यहाँ के जनमानस की आहें समय-समय पर भगत सिंह, चद्रशेखर, सरदार पटेल जैसे लोगों को पैदा करती रहती है और हर बार सत्ता के दलाल उनके और जनमानस के बीच नेहरू बनकर खड़े हो जाते हैं। ना जाने ये देश इस अभिशाप से कब मुक्त होगा ! क्या पटेल हर बार इसी तरह कभी गांधी और नेहरु तो कभी नितीश, आडवाणी और सोनिया का शिकार होता रहेगा? सेकुलरिज्म का राग अलापने वाले विद्वानों से प्रश्न है- एक राष्ट्रवादी (सेकुलर नहीं !) शास्त्री जी का नाम छोड़ दीजिये और बताइये अब तक के चौदह सेकुलर प्रधानमंत्रियों ने क्या किया? बंटवारा किसने रोका? साम्प्रदायिक दंगे किसने नहीं होने दिए ? मंहगाई से राहत किसने दी? भ्रष्टाचार कौन रोक पाया? राजनीतिक अपराधीकरण किसने रोका? मोदी की दावेदारी पर विद्वता बघारने वाले पहले इनमे से किसी एक प्रश्न का जवाब दें! एक सवाल का जवाब है मेरे पास (जनता को इन सेकुलरों ने क्या दिया?) – सभी के शासनकाल में जनता त्राहिमाम ही करती रही। यदि मोदी के काल में भी कुछ ऐसा होगा तो जनता अभ्यस्त है पीड़ा को सहने की, इसके लिए हमें सियारों की हुक्का-हुंवा की जरूरत नहीं है। परन्तु ये होना नहीं है जो मैं बता रहा हूँ। होगा शायद वही जो सियार चिल्ला रहे है क्योंकि कायरों की कौम पर शेर नहीं सियार और गीदड़ ही हुकूमत चलाते है। हमेशा से राजनीतिक अभिशाप झेल रहा हिन्दुस्तान अभी शायद इससे मुक्त नहीं होगा।
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