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अश्रुओं का विष

चातक
चातक
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तू मुझमे कहीं समाया है,
और तुझको ही ये पता नहीं।
बेगाना मुझे बनाया है,
तेरे अपनों का पता नहीं।
कुछ झूठे नातों की खातिर,
तूने दिल का रिश्ता तोला।
आँखों में भरकर के आंसू,
मेरे जीवन में विष घोला।
ये जहर समाया रग-रग में,
कब दम तोड़ेगा पता नहीं।
तू मुझमे कहीं समाया है,
और तुझको ही ये पता नहीं।
तुम कितने भोले
दिखते हो,
कितने मासूम से लगते हो।
लेकर हमसे इकरार-ए-वफ़ा,
फिर बेगानापन करते हो।
हम तेरी आँखें तकते है,
अपनी तकदीर समझने को।
एक नज़र चाहते हैं तेरी,
पर ये तो कोई खता नहीं।
तू मुझमे कहीं समाया है,
और तुझको ही ये पता नहीं।।

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