Menu
blogid : 1755 postid : 393

राजनीति और जातिनीति

चातक
चातक
  • 124 Posts
  • 3892 Comments

राजनीति में जातिवाद की समस्या

हिन्दुस्तान की राजनीति की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि राष्ट्र-सेवा और जनसेवा का यह क्षेत्र अपनी शैशवावस्था से ही धर्म और जाति के इर्द-गिर्द चक्कर काटता रहा है, सो हुआ वही जो ऐसी राजनीति का परिणाम होना चाहिए- “चले खूब लेकिन पहुंचे कहीं नहीं| राजनेता राजनीति के कोल्हू में जातिवाद पेरते रहे और हिन्दुस्तानियों का सारा रस निकालकर खुद सत्ता का रसास्वादन करते रहे|” हम ये जानते हुए भी कि राजनीति के इन जातिवादी चक्करों में पेराई हमारी ही हो रही है, इसी जातिवादी राजनीति को पोसते रहे हैं| कभी यदि कोई आवाज इस व्यवस्था के विरुद्ध उठी भी तो उसे ऐसे दबा दिया गया जैसे नक्कारखाने में तूती की आवाज|
हिन्दुस्तान को एक पूर्ण लोकतंत्र बनाने में सबसे अहम् किरदार संवैधानिक रूप से जनता का होता है लेकिन इसके व्यावहारिक पक्ष को देखने पर पता चलता है कि इसमें सबसे अहम् किरदार अव्वल तो राजनीतिक पार्टियों का और फिर उन राजनेताओं का होता है जो जनता द्वारा प्रतिनिधि के रूप में संसद और विधानसभाओं में चुनकर भेजे जाते हैं| हमारा संविधान जहां स्वयं को जातिनिरपेक्ष और धर्मनिरपेक्ष बताता है वही ये राजनीतिक दल सिर्फ और सिर्फ जाति और धर्म की बुनियाद पर अपनी दुकाने चला रहे हैं| जिस तरह से आज हिन्दुस्तानियों की जातिवाद और धार्मिक कमजोरी का फायदा राजनीतिक दल और राजनेता उठा रहे हैं वह हिन्दुस्तान के संविधान की आत्मा पर कुठाराघात है|
हमारे देश की एक बड़ी समस्या यह है कि यहाँ पर किसी भी समस्या पर कोई विचार समस्या के उन्मूलन के लिए किया ही नहीं जाता| यही कारण है कि आज भी जातिवाद और धार्मिक कमजोरी राष्ट्र की राजनीति तय करती है न कि राष्ट्रनीति| जातियों को आपस में बांटने के लिए जातीय आरक्षण और धर्मों को आपस में लड़ाने के लिए साम्प्रदायिक आरक्षण सबसे बेहतर उपाय के रूप में उभर कर सामने आये जिन्हें सभी राजनीतिक दलों ने सर्वोत्तम हथियार और सर्वोत्तम मुद्दे के रूप में स्वीकार किया है|

जातिवादी समस्या का निदान

मेरा मानना है कि दुनिया में जितनी भी समस्याएं हैं उन सभी का निदान उन समस्याओं से पहले ही उपलब्ध होता है यानी कोई भी समस्या लाइलाज नहीं होती, उसे लाइलाज दर्शा कर कुछ लोग अपनी कुत्सित इच्छाओं की पूर्ति मात्र करते हैं|
जातिवाद सम्बन्धी समस्या का निदान पूरी तरह से संभव है बशर्ते एक दृढ राजनीतिक संकल्प होना चाहिए हमारे देश की सभी राजनीतिक पार्टियों में कमोवेश ये इच्छाशक्ति नहीं पाई ज़ाती| तो फिर इलाज होगा कैसे ? वैसे ही जैसे इस रोग को पैदा किया गया था- राजनीति में जातिवाद को स्थान दे के| सबसे पहले हमें राजनीतिक दलों पर किसी भी जाति या धर्म के पक्ष या विपक्ष में बोलने या उससे सम्बंधित किसी भी बात को उनके एजेंडे में रखने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना होगा और ये पूरी तरह संभव है| तब हमारे देश की राजनीति बजाय कोल्हू के बैल की तरह विस्थापन-विहीन जातिवादी चक्कर काटने के, राष्ट्रवाद के सीधे रास्ते पर चलेगी|
संविधान सर्वोपरि है इस बात को बजाय आम जनता को बताने के हर उस राजनेता को अच्छी तरह से कंठस्थ कराया जाए जो राष्ट्र-सेवा के लिए जनप्रतिनिधि के रूप में संसद या विधानसभा में चुनकर भेजा जाता है| एक छोटा सा परिवर्तन बहुत बड़ा इलाज बन सकता है सिर्फ एक आम-चुनाव समय से एक वर्ष पहले करा लिए जाएँ ताकि अगले एक वर्ष तक चुने गए नेताओं को उनके कर्तव्य, संविधान, राष्ट्र, हमारा इतिहास, उनके द्वारा जातिवादी और सम्प्रदायवाद की कारगुजारियों के राष्ट्र पर पड़ने वाले दुष्परिणामों को उन्हें भली-भाँती समझाया और कंठस्थ कराया जा सके| फिर उनमे से जो मानक पर खरे उतरें उन्हें ही संसद और विधानसभाओं में प्रवेश दिया जाए ताकि संसद और विधानसभाओं में सब्जीमंडी की गूँज नहीं राष्ट्रवाद का नाद सुनाई दे|
राईट टू रिकाल उन प्रतिनिधियों के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है जो विद्वान् होते हुए भी कुत्ते की दुम होते हैं और अपने क्षणिक लाभ के लिए जातिवादी राजनीति या भ्रष्ट आचरण से बाज नहीं आते|
अंत में सबसे अहम् बात जब भी राजनीति में जातिवाद की बात आती है सभी सुधार समाज पर लागू किये जाते हैं यानी राजनीति में जाति से परहेज करने के स्थान पर लोगों को सलाह दी ज़ाती है कि वे जात-पात के भेद को त्याग कर समाज को उत्कृष्ट बनाएं| मैं भी इस बात से सहमत हूँ बशर्ते एक बात मेरी मानी जाय (शायद पूरे हिन्दुस्तान की भी राय कुछ ऐसी ही होगी) भारतीय समाज सवा अरब लोगों का एक विशाल समाज है इस पर तुरंत किसी सुधार या नयी व्यवस्था को लागू नहीं किया जा सकता लेकिन राजनीति में लोग और दल बहुत ही कम हैं सबसे पहले ये राजनेता और राजनीतिक दल जाति और सम्प्रदाय का नाम लेना बंद करें और किसी भी नेता द्वारा ऐसा करने पर उसे राजनीति के लिए अयोग्य घोषित करने की शुरुआत करें|

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh