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अब क्या खरीदूं !

चातक
चातक
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आते जाते मैं अक्सर उस दुकान पर ठिठक जाता था और उसमे करीने से सजाई चीजों को बड़ी हसरत से देखा करता था| ये दुकान थी सपनो की, अन्य दुकानों से बिलकुल अलग! काफी गहमा-गहमी का माहौल रहता था पर मेरी निगाहें सीधे अपने सपनों पर ही जाकर टिक जाती थीं| हर बार मन करता था कि उनमें से कोई सपना साथ लेता चलूँ लेकिन मजबूरी थी मैं चाह कर भी कुछ नहीं खरीद सकता था| मैं ही क्यों वहां आने वाला कोई भी व्यक्ति आसानी से कुछ भी नहीं खरीद पाता था क्योंकि आपको एक सपना खरीदने के लिए कम से कम दो सपने बेचने पड़ते थे और मुझे तो बहुत सारे सपने खरीदने थे, कुछ अपने लिए और कुछ अपनों के लिए | कम से कम एक सपना तो पापा के लिए जरूर लेना था फिर अम्मा की याद आती, उनके लिए भी एक सपना खरीदना है, दीदी के सपने भी तो मुझे पता हैं उनके लिए कुछ ख़ास लेना होगा और छोटा भाई उसने भी तो कुछ सपने देख रखे हैं कम से कम एक तो उसे दे सकूं! समझ में नहीं आता था कि कौन से सपने बेंच दूं तो इनमें से सभी के लिए कुछ न कुछ जरूर ले जा सकूं! काफी सोचने के बाद भी कुछ न सूझता और मैं बिना कुछ बेंचे, बिना कुछ खरीदे वापस आ जाता|
एक दिन जब मैं उस दुकान पर पहुंचा तो देखता हूँ कि मेरा एक छोटा सा सपना अपनी जगह पर नहीं था| मैं बेचैन हो उठा| आज रहा नहीं गया और मैं सीधे दुकानदार के पास पहुंचा और उससे अपने सपने के बारे में जानना चाहा| दुकानदार ने बिना कुछ कहे उस दीवार की ओर इशारा किया जहां वह लोगों द्वारा बेंचे गए सपने लगाता था| मैंने नजर घुमाई- वहां मेरे पापा और अम्मा के बहुत सारे सपने सजे थे|

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