उमंग सबरवाल के कुछ बयानों को अटपटी तरह से तोड़ मरोड़ कर कुछ तो मीडिया और कुछ स्वतंत्र ब्लोगर एक अजब मोर्चा खोले बैठे है| मीडिया उमंग की मुहिम को ना जाने क्यों पश्चिमी तर्ज पर पर ही दिखाने को टूटी पड़ रही है जबकि उमंग का विरोध प्रदर्शन किसी भी तरह से संस्कृति या सभ्यता पर चोट पहुंचाने वाला या नंगई का समर्थन करने वाला प्रतीत नहीं होता| वह सिर्फ और सिर्फ नारी को दी जाने वाली कुत्सित बलात्कार सरीखी पाश्विक प्रताडना का विरोध कर रही है और ये निश्चय ही एक साहसी कदम है|
एक और बात ध्यान देने योग्य है कि उनकी उम्र महज १९ वर्ष है यानी एक ऐसी उम्र जिसमे न तो प्रौढ़ उम्र की धूर्तता है और न ही परिपक्वता| उनके पास है ऊर्जा और समाज को एक नयी राह देने का जज्बा जहाँ वो न तो राजनेताओं की तरह सोची समझी बयानबाजी करने की मंशा रखती हैं और न समाज को स्त्री बनाम पुरुष का युद्ध क्षेत्र बनाना चाहती है|
जरा उमंग के बयानों पर आई खबर पर और स्वयं उमंग के बयान पर गौर करें-
“महिलाओं के खिलाफ रेप जैसे संगीन अपराधों के विरोध में दुनिया भर में तेजी से मशहूर हो रहा स्लटवॉक आंदोलन अब भारत में भी दस्तक दे चुका है। लेकिन भारत में महिलाएं दूसरे देशों की तरह छोटे और तंग कपड़ों में नहीं बल्कि ‘सही कपड़ों’ में स्लटवॉक करेंगी। दिल्ली में स्लटवॉक की शुरुआत करने वाली दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा उमंग सबरवाल का कहना है कि पहनावे को रेप की वजह बताने का विरोध और पीड़ित की जगह अपराधी पर फोकस करना ही उनके आंदोलन का उद्देश्य है। उमंग ने स्लटवॉक को ‘बेशर्मी मोर्चा’ नाम दिया है।”
स्पष्ट है कि ‘सही कपडे’ कहने का उद्देश्य यही है कि स्वयं उमंग भी कुछ कपड़ों को गलत मानती है| मैं इसे उमंग के शब्दों में ही और ज्यादा स्पष्ट करता हूँ|
खुद के छोटे कपड़े पहनकर अपनी बात को वजन देने के सवाल पर उमंग का कहना है, ‘मैं सही तरह से कपड़े पहनूंगी। स्लटवॉक आंदोलन का यह मतलब नहीं है कि लड़कियां मछली पकड़ने वाला जाल (फिशनेट) पहनकर घूमें। हम बड़े मुद्दों की तरफ लोगों का ध्यान खींचना चाहते हैं।’
फिर ध्यान दें- यहाँ वे स्वयं लड़कियों को ताकीद कर रही हैं कि वे अंग प्रदर्शन करने वाले कपडे न पहने|
थोडा और आगे बढते हैं-
उमंग के मुताबिक, ‘हम सभी जानते हैं कि दिल्ली महिलाओं के लिए कितनी असुरक्षित है। जब भी महिलाओं के साथ कोई अपराध होता है हम अपराध करने वाले को दोषी ठहराने के बजाय महिला को ही सबक सिखाने लगते हैं। हम उसे बताने लगते हैं कि उसे क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं। हमें बाहर जाने, अपनी मर्जी के मुताबिक कपड़े पहनने, पेशा चुनने और सेक्सुअल पार्टनर की संख्या तय करने का हक है।’ उमंग के मुताबिक दिल्ली में स्लटवॉक जल्द ही एक वेबसाइट लॉन्च करेगा। इसके अलावा नुक्कड़ नाटकों के जरिए भी लोगों में जागरूकता लाई जाएगी।
यहाँ पर उमंग ने ‘दिल्ली को’ यानि व्यवस्था को दोषी बताया है| महिलाओं को दोषी करार देने वाले वर्ग में भी उन्होंने पुरुष शब्द का नहीं वरन हम शब्द का प्रयोग किया है यानी ‘स्त्री व् पुरुष दोनों’ | नुक्कड़ नाटकों के पीछे भी उनका उद्देश्य ‘लोगों’ में जागरूकता लाना है न कि कुछ छद्म नारीवादियों की तरह सम्पूर्ण पुरुष वर्ग से मोर्चा लेकर कलह मचाने का|
इस पूरे प्रकरण को अच्छी तरह से समझने के बाद मुझे उमंग का पक्ष जितना मजबूत और बेहतर लगा उनकी बात को तोड़ मरोड़ के रखने वालों का पक्ष उतना ही खोखला और द्वेष से भरा हुआ| अब जागरण मंच के बुद्धिजीवी ब्लोगर तय करें कि क्या किसी की सही बात को तोड़ मरोड़ कर उसे लोगों की नजर में खलनायक बना कर प्रस्तुत करना उचित आचरण है? क्योंकि उमंग की मुहिम को जिस तरह पुरुष बनाम स्त्री बनाया गया उससे पुरुष वर्ग के बीच एक अच्छी खासी ऊर्जावान व स्त्रीहित चाहने वाली युवती की कैसी तस्वीर बनी ये आप सभी ने देखा|
मेरे ख्याल से अब हमें उमंग ले जज्बे की तारीफ़ करने में संकोच नहीं होना चाहिए और हमें उनकी मुहिम को नैतिक समर्थन भी देना चाहिए| उनकी कुछ बाते यदि अपरिपक्व लगें तो अभी उनके पास काफी वक्त भी और समझ भी| काश कि जुलाई में मैं उनके इस साहसिक आग्रह को देखने दिल्ली जा पाता क्योंकि ये मार्च हमें सर झुका के नहीं सर उठा के देखनी है|
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