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सजदा

चातक
चातक
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हम तो सजदे में सर को झुकाते रहे,
वो खुदा बस हमें आजमाता रहा;
हाथ रखा न सर पे कभी भूल कर,
अहमियत सिर्फ अपनी बताता रहा |
सब्र मेरा न टूटा ये बात और थी,
वो मेरे दिल के टुकड़े बनाता रहा;
दिल में तस्वीर जिसकी छिपाए फिरे,
दिल के छालों को वो ही दुखाता रहा |
जो खुदा है मेरा, नाखुदा है मेरा,
मेरी कश्ती को वो ही डुबाता रहा;
मेरा रहबर बना और चला दो कदम,
छोड़ कर साथ फिर वो भी जाता रहा |
ना किसी की खता, मैं ही नादान हूँ,
वो तो दस्तूर-ए-दुनिया निभाता रहा;
मैंने कितना कहा- ‘अब संभल, अब संभल’,
दिल है दीवाना उसको बुलाता रहा |

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