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प्रज्ञा को न्याय दो!

चातक
चातक
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जहां तक मैंने साध्वी प्रज्ञा का विश्लेषण किया है, मुझे वे एक बेहद जुझारू और साहसी नारी लगी जो गलती से भीरु हिन्दुओं के कुल में पैदा हो गईं| कम ही मर्द इतने मर्दाने होते हैं जिनमे उनके जितना साहस हो| मजे की बात तो ये है कि सोहराबुद्दीन मामले में शासन प्रशासन मानवाधिकार की बात करता है और प्रज्ञा के मामले में ना नारी अधिकार की बात होती है न मानवाधिकार की!
इतनी सारी मुखर नारियां जो न जाने कितनी बेतुकी बिन सर पैर की बातों के लिए मीडिया से लेकर ब्लॉग मंच तक हिला रही हैं उनकी नज़र नारी पर हो रहे इस अत्याचार पर क्यों नहीं पड़ती| मुझे तो लगता है स्त्रियों में सिर्फ बाहर दिखाने के लिए बहन-चारा हैं अन्दर से बस सास-बहू या देवरानी-जिठानी ही रही हैं वही रहेंगी| कहाँ हैं महिला ब्लोगर, महिला मुक्ति आन्दोलन? कहाँ हैं ‘मुझे गर्व है कि मैं नारी हूँ’? कहाँ चली गई लिखने की कला? क्या इसके लिए भी कोई पुरुष आगे आये तब आँख खुलेगी कि प्रज्ञा सिर्फ हिन्दू अभियोगी नहीं बल्कि एक नारी भी है? कहाँ गए नारी को सम्मान दिलाने वाले बुद्धिजीवी? आँखें खोलो और न्याय की फ़रियाद तो करो! भर दो जागरण जंक्शन का ब्लॉग मंच ‘प्रज्ञा को न्याय दो के
उदघोष से’!

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