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आईना

चातक
चातक
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आईना  बोला – गुनाहगार! देख अंदर अपने !
मैं ये बोला के, तू न झांक तू जल जायेगा .
मेरे अंदर हैं शरारे मगर मैं जिंदा हूँ
तेरे ऊपर ये गिरे तो, तू पिघल जायेगा
मैं गुनाहगार हूँ हर शख्स का इस दुनिया में
खुदा भी देखेगा मुझको तो सहम जायेगा
फराख आईने इतना भी तू न हो हैरां
एक दिन तू ही मेरी दास्ताँ दोहराएगा
मेरे गुनाहों की संजीदगी तू समझेगा
जब कोई मेहरबान पत्थर तुझे दिखायेगा
कैसे होती है फ़ना जिंदगी पल भर में ए दोस्त
कैसी होती है तड़प सूखते अहसासों की
कैसी होती है सजा वफ़ा के गुनाहों की
चढेगा वफ़ा की सूली तो समझ जायेगा. 

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