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सात कहानियाँ (किताबी कीड़े ना बने)

चातक
चातक
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प्रिय के.एम. मिश्र जी की फरमाइश पर :
आज बहुत दिनों के बाद फिर कुछ लिखने बैठा हूँ | विचारों का प्रवाह किसी भंवर की तरह फिर मंथन कर रहा है शायद सारी बातें लिखना इतना आसान ना होगा फिर भी कोशिश है कि सम्पूर्ण विचारों का एक अंश मात्र ही लिख सकूँ तो बेहतर होगा | आज सिर्फ कहानी सुना कर इतिश्री नहीं होगी बल्कि प्रयास होगा कि इस कहानी का नैतिक ज्ञान प्रत्येक पाठक तक समुचित रूप में पहुँच सके |

सर्वप्रथम तो मैं एक भ्रम पर विराम लगा देना मुनासिब समझूंगा जो आपको लेख (कहानी) का शीर्षक पढकर हो सकता है | किताबी कीड़ा ना बनने से मेरा तात्पर्य पुस्तकों का त्याग करना नहीं अपितु पुस्तकों को ही समग्र सत्य मानकर सहज-बुद्धि का परित्याग करने से बचना है |

एक छोटा सा गाँव था गाँव का नाम क्या था इससे हमारी कहानी का कोई लेना देना नहीं है | ये एक न्यायी राजा के राज्य का हिस्सा था | राज्य व राजा का नाम भी हमारी कहानी का हिस्सा नहीं है | अब चलते हैं मतलब की बात पर | इस गाँव में एक किसान के घर एक होनहार बालक का जन्म हुआ | किसान ने उसकी प्रतिभा को देखकर उसे काशी पढ़ने भेज दिया | समय बीतता गया और एक दिन वो बालक एक युवा आचार्य बनकर पुनः गाँव वापस आया |
एक दिन प्रातः काल आचार्य जी स्नानादि करने के पश्चात सूर्य-अर्घ्य दे रहे थे | अर्घ्य देते समय उन्होंने बुदबुदाते हुए प्रार्थना की-
“प्रीती बड़ी माता की, और भाई का बल ;
ज्योति बड़ी किरणों की, और गंगा का जल ||”
आचार्य जी का इतना कहना क्या के पास से गुजरती धोबन ने अपने गधे को एक जोरदार डंडा मारा और कहा –
“चल गधे ! एक गधे की बात को क्या सुनता है !” आस पास खड़े लोग हंस पड़े |

आचार्य जी ठहरे पढ़े-लिखे विद्वान और एक अदना सी धोबन ने खुले आम गधा कह कर अपमान कर दिया | अत्यंत मर्माहत से आचार्य ने ना कुछ खाया ना पिया दिन भर गुमसुम से एकान्तवास लिए सोचते रहे | जाने कब रात हुई, जाने कब फिर सुबह हुई पता ना चला | पौ फटने को थी तब तक कुछ निर्णय लेते हुए जल्दी से नित्य क्रियाओं से निवृत्त हुए और चल पड़े राजप्रासाद की ओर | दोपहर चढ़े आचार्य जी राजा के सम्मुख प्रस्तुत थे | राजा ने जब विद्वान का परिचय जाना तो ससम्मान आसान दिया और पधारने का कारण जानना चाहा | आचार्य जी ने अपनी पीड़ा कह सुनाई | राजा ने कहा “यदि उस गँवार नारी ने आपका असम्मान किया है तो उसे दंड जरूर मिलेगा |”
धोबन को राजदरबार में बुला-भेजा गया | दूसरे दिन फिर सभा लगी |
राजा ने धोबन से पूछा “क्या तुमने आचार्य जी को गधा कहा ? ”
धोबन ने जवाब दिया “नहीं सरकार मैं इतने बड़े विद्वान को भला गधा कैसे कह सकती हूँ |”
आचार्य जी बोले “क्या तुमने अपने गधे को मारते हुए ‘चल गधे ! एक गधे की बात को क्या सुनता है !’ नहीं कहा था |
धोबन : जी वो तो आपकी बात सुन के कहा था |
राजा : कौन सी बात ?
धोबन : आप आचार्य जी से ही पूछ लीजिए |
राजा : आचार्य जी क्या आप अपनी बात दोहराएँगे ?
आचार्य जी : “प्रीती बड़ी माता की, और भाई का बल ; ज्योति बड़ी किरणों की, और गंगा का जल ||
राजा : बात तो बिलकुल सही है | माँ से ज्यादा स्नेह किसी का नहीं हो सकता | भाई के समान कोई दूसरा बल नहीं होता | सूर्य की किरणों से ज्यादा कोई रौशनी नहीं दे सकता | और गंगा सा कोई जल संसार में नहीं | इसमें गधे जैसी कौन सी बात है | तुमने तो इस बात पर आचार्य जी को गधे के समान कह कर बड़ी मानहानि की |
धोबन : महाराज आचार्य जी की बात सिर्फ सत्य प्रतीत होती है परन्तु है नहीं |
राजा : अच्छा ! तो सही क्या है ?
धोबन : महाराज !
“प्रीति बड़ी त्रिया (स्त्री) की ; (क्योंकि बात अगर पिता और पुत्र में फंसे तो माँ पुत्र का कभी साथ नहीं देगी परन्तु पत्नी किसी भी हाल में साथ होगी)
और बाहों का बल | (जब बैरी अकेले में घेर लेगा तो भाई जब जानेगा तब जानेगा लेकिन वहाँ अपनी बाहों का बल ही काम आएगा )
ज्योति बड़ी नैनो की, (जब आँख ही ना हों तो क्या सूरज की किरणों की रौशनी और क्या अमावस का अँधेरा सब बराबर है )
और मेघा का जल | (गंगा जी पवित्र भले ही हैं लेकिन वे ना तो जन-जन की प्यास बुझा सकती हैं ना ही सभी खेतों में फसलों की सिंचाई कर सकती हैं)
बस यही सोच कर मैंने कहा ‘चल गधे ! एक गधे की बात को क्या सुनता है !’ क्योंकि इनका यह पुस्तकीय ज्ञान हमारे लिए सही बिलकुल भी मिथ्या है जिसकी जरूरत मेरे गधे को भी नहीं है |
राजा : आचार्य जी, अब आप क्या कहते हैं ?
आचार्य : महाराज मुझे इस बात की समझ आज हुई है कि सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान संपूर्ण ज्ञान नहीं होता | अभी बहुत कुछ शेष है जो मुझे अपने बुजुर्गों और व्यवहारिक जीवन का ज्ञान रखने वाले अनपढ़ परन्तु बुद्धिमान लोगों से सीखना शेष है |
पाठकों कहानी तो यहाँ समाप्त होती है लेकिन इसमें छिपी दसियों सीख समझने के बावजूद कहीं अधिक और गहराई में दबा देखता हूँ | आशा है आप उन चीजों को भी खोज पायेंगे |

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