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यक्ष प्रश्न : कैसी नैतिकता ?

चातक
चातक
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सबसे पहले तो जागरण को धन्यवाद और मुबारकबाद –

धन्यवाद, जागरण ब्लॉग के माध्यम से भारतीय जनमानस को अपनी बात, अपने विचार व्यक्त करने का मंच देने के लिए और

मुबारकबाद, जागरण को ऐसे विचारवान एवं जागरूक ब्लागर मिलने के लिए जो बड़े धैर्य से लिखते हैं और सहर्ष प्रतिक्रिया देते और स्वीकार करते हैं |

इन दिनों मैंने बहुत से ब्लॉग पढ़े और बार बार मन में आया कि अधिकतम पर प्रतिक्रया दूँ (कुछ पर दी भी) फिर लगा कि मुझे स्वयं ब्लॉग लिखना चाहिए जिससे कम से कम एक प्रश्न पर एक साथ प्रतिक्रिया व्यक्त हो सके.

अधिकतम ब्लॉग जिनमे ब्लागर ने स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, स्त्री अधिकार, स्त्री शोषण, स्त्रियों पर अत्याचार, वैवाहिक समस्याएं, स्त्री की समाज में असुरक्षा आदि प्रश्न उठाए हैं उनमे कहीं न कहीं स्त्री के साथ होने वाले कुछ वास्तविक और कुछ कथित अत्याचार के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में ये प्रश्न जरूर है- कैसी नैतिकता |

ये प्रश्न ही बड़ा अटपटा लगा | क्या आज हालत इतने बदतर और लोग इतने विवेकहीन हो चले हैं कि उन्हें पूछना पड़ रहा है- कैसी नैतिकता ? मैं एक छोटा सा उत्तर देना चाहूँगा- नैतिकता- मनसा (मन कि), वाचा (वाणी की), कर्मणा (कर्म की) और पवित्रता भी इससे इतर नहीं |

ज्यादातर लोग समझ गए होंगे कि मेरा इशारा किस ओर है और कुछ के लिए मैं और स्पष्ट कर देता हूँ- मेरा इशारा उन ब्लागस कि ओर है जिनमें हाल ही में हुई नवयुकों-नवयुवतियों की कुछ हत्याओं पर रोष जताया गया है और न जाने कितने ही उदाहरणों को दे कर नारी को एक दीन-हीन दशा में फँसी अबला के रूप में कुर्बान होते बताया गया है | सारे के सारे उदहारण तथाकथित प्रेमियों के ही हैं | आजकल इतने आशिक-माशूक पैदा हो गए हैं कि आप चाहो तो आई. ए. एस. स्तर की कम्पटीशन परीक्षा आयोजित करवा लो पास भले एक भी न हों आवेदनकर्ता करोड़ों में मिलेंगे | इनके राष्ट्र के लिए योगदान कि तो अच्छी खासी फेहरिस्त बन जायेगी | सामजिक समरसता बनाने के इन पछधर प्रेमियों के कृत्यों से सामाजिक सदभाव और विश्वास पैदा होने से तो रहा हाँ जो बनी बनाई आपसी विशवास की नीव कुछ एक सच्चे राष्ट्रवादी डालते हैं उसे ये जरूर जड़ से हिला देते हैं | विभिन्न जातियों और धर्मों के बीच प्रेम और सदभाव एक दूसरे कि सहायता करने, एक दूसरे के दुःख-मुसीबत में काम आने, धार्मिक, सामजिक और आर्थिक गतिविधियों में सहयोग करने से बढ़ता है | पडोसी की लड़की भगा ले जाने, या कोई पसंद आ जाने पर उसके साथ भाग जाने पर वैमनस्य बढ़ता है धार्मिक उन्माद बढ़ता है प्यार नहीं बढ़ता, इतनी छोटी सी बात नहीं समझ में आती क्या ?

अंतरजातीय विवाहों से आप कभी भी समाज से जाति और धर्म कि दीवार नहीं तोड़ पायेंगे बल्कि हालत बद से बदतर होते जायेंगे | दो उदाहरण ले के देख लीजिए-

पहला : ईद और मुहर्रम के दिन हिंदुओं का मुसलमानों के साथ शामिल होना उनके मन में विश्वास भी पैदा करेगा और प्यार भी जब एक मुसलमान एक हिंदू को अपने सर पर ताजिया रख कर हाय हसन ! हम न रहे ! मातम करता देखेगा तो निश्चय ही दुर्गा पूजा में माँ कि प्रतिमा उठाने को बढ़ा पहला हाथ उसी मुसलमान का होगा | जब ईद के दिन एक हिंदू उसे गले लगा के मुबारकबाद देगा तो वो प्यार उसे होली के दिन तक याद रहेगा और वो बिना बुलाए उसे होली कि शुभकामनाएँ देने चला आएगा | यहाँ न हिंदू को अपना धर्म अपनी मान्यता छोड़ने कि जरूरत है न ही मुसलमान को अपनी, जरूरत है एक दूसरे कि मान्यताओं को सम्मान देने की | इसे कहते हैं नैतिकता !

दूसरा : एक हिंदू लड़का एक मुसलमान कि लड़की से (तथाकथित) प्यार करने लगे और दोनों कोई सम्बन्ध बना ले या भाग जाएँ, क्या होगा ? सांप्रदायिक तनाव, दंगा, फसाद ? कोई परवाह नहीं | एक साथ रहते हैं जब मन करेगा तो लड़ेंगे भी लेकिन जब फसाद का कारण उपरोक्त होगा तो विश्वास का खून होगा जिसे न सिर्फ दोनों परिवार बल्कि दोनों संप्रदाय को एक दूसरे पर अविश्वास करने पर मजबूर कर देगी | उन दोनों के परिवारजन तो शायद बच्चों के मोह में उन्हें स्वीकार कर ले लेकिन दोनों संप्रदायों के बीच जो खाई खुद गयी उसका दर्द दशकों तक समाप्त नहीं होगा | इसे कहते हैं अनैतिकता |

मेरा विनम्र निवेदन है उन सभी समाज सुधारकों से (जो मानते हैं कि अंतरजातीय या तथाकथित प्रेम विवाहों से ही समाज की कुरीतियाँ दूर होंगी) कि पहले सभी धर्मों और जातियों को समाप्त करने की एक मुहिम चलायें और संसद में क़ानून बनवा दे या उच्चतम न्यायालय से सभी धर्मों पर विवाह और प्यार में दखल देने पर प्रतिबन्ध लगाने का आदेश ले लें या कम से कम माता-पिता से कानूनन ये हक जरूर समाप्त करवा दें जिससे एक ही चीज़ रह जाये- इंसान एक जीवधारी है जिसे वयस्क होने पर एक जोड़े कि जरूरत होती है जो किसी भी तरह यदि उसे पसंद आ जाये तो इस घटना को प्यार कहा जायेगा और उसे पूरा अधिकार है कि वह उस जोड़े की सहमति से जितने मिनट, घंटे या वर्ष (या हो सके तो जीवन भर) उसे साथ पति-पत्नी के रूप में निर्वाह कर सकता है |

यहाँ पर मैं फिर एक बार कहना चाहूँगा कि कैसी नैतिकता ? प्रश्न करने वाले सभी दार्शनिक अपनी आरामकुर्सी से बाहर आ कर चिंतन करें समाज से कुरीतियों को हटाने का प्रयास करें समाज को नवयुवकों का दुश्मन बना कर प्रस्तुत न करें | जहाँ तक प्रेम का प्रश्न है यह अत्यंत पवित्र शब्द है (आशा है कि इस पर ‘कैसी पवित्रता ?’ प्रश्न नहीं उठाया जायेगा) इसे व्याख्यित करना शायद मेरी संपूर्ण मेधा से परे है फिर भी मैं कुछ बड़े लोगों की पंक्तियाँ लिख कर उस भावना को शब्द देता हूँ जो मैं अंतर्मन से महसूस तो करता हूँ लेकिन शब्दों में बयान नहीं कर सकता-

It (LOVE) is the nothern star to the wandering bark,
Whose worth unknown, but height be taken.
William Shakespear

रहिमन ये घर प्रेम का खाला कर घर नाहिं,
सीस उतारे हाथ कर, सो पैठे घर माहिं |
अब्दुर्रहीम खानखाना

इश्क की आग है वो आतिश ग़ालिब, जो जलाये न जले, बुझाये न बुझे |
मिर्ज़ा ग़ालिब

कबीर रेख स्यन्दूर की काजल दिया न जाय,
नैन रमईया रम रहा, दूजा कहाँ समाय ?
कबीरदास जी

जहाँ तक मेरे समझ में आया प्रेम या इश्क ईश्वर तुल्य है जिसमें अपवित्रता एवं वैमनस्य का कोई स्थान नहीं है | प्यार से तो प्यार उत्पन्न होना चाहिए घृणा नहीं , फिर हम उस प्यार को प्यार कहने की भूल कैसे कर सकते हैं जिससे जन्म देने वाले माता-पिता (जिन्हें मैं साक्षात ईश्वर मानता हूँ) के दिल में ही घृणा भर उठती है | आप विचारकों में से जिनके बच्चे हैं मेरा सवाल उनसे भी है – क्या आप के बच्चों को प्यार मिले तो आपको कष्ट होगा ? अगर मैं गलत नहीं हूँ तो आप सब का जवाब होगा ‘नहीं’ बल्कि आप को खुशी होगी कि आपके जिगर के टुकड़े को उसकी पत्नी या उसका पति आपसे ज्यादा चाहता है | मेरा सवाल उन लोगों से भी है जो तथाकथित प्रेमियों के पछधर कुछ इस कदर हैं कि सामाजिक विश्वास और समरसता जाये भाड़ में इन प्रेमियों का मिलन करा दो जिससे वे किशोर किशोरियां भी जिन्हें अपने ऊर्जा, शक्ति, और मेधा राष्ट्र को मजबूत और संपन्न बनाने में लगानी चाहिए अपनी संपूर्ण ताकत और चरित्र ‘दुश्मन ज़माने’ से लड़ने में झोंक दे, हमारी परम्पराओं को रूढियां कह कर तोड़ने में लग जाएँ और जिस परिवार ने इस लायक बनाया कि अपना बुरा भला सोच सको उसी को शर्मसार कर दें | जिस देश के किशोर और नवयुवक मोहिनियों की लटों में उलझे रहेंगे जिनमे अपने पिता के खून का गर्व और और माँ के दूध का घमंड सूख जायेगा उसका भविष्य कितना भयानक होगा कल्पना मात्र से ही सिरहन होने लगती है |

मैं सभी नवयुवकों-नवयुवतियों, किशोर-किशोरियों का आह्वान करता हूँ कि वे मर्यादाओं को तोड़े नहीं मर्यादा में रहना सीखें प्यार से वासना कि आग बुझाना नहीं प्यार कि पूजा करना सीखें | समाज आपके लिए है आपका अपना है आप इसे विश्वास करने का मौका तो दीजिए | देखिये सभी लड़कियों सभी नारियों को अधिकार मिलते हैं कि नहीं| दकियानूसी सोच आज भारतीय समाज में नहीं आप लोगों में है आप में से कुछ मर्यादाओं को भंग करते हैं और बेगुनाह उसकी सजा भुगतते हैं | गांव कि एक लड़की शहर में पढ़ने जाती है तो उसे देख कर दस माता पिता और अपनी लड़की को अकेले भेजने का साहस जुटाते हैं मगर तब तक किसी एक को ‘प्यार’ हो जाता है और टूट जाता है ये सिलसिला बीस लड़कियों का शहर जाकर पढ़ने का सपना टूट जाता है अगर कोई हिम्मत करके बोले भी तो माता-पिता कहते हैं- ‘हमें पता है वहाँ कौन से पढाई होती है !’ कभी सोचा कि ये आवाज़ कितने गहरे छिपे घाव से आई | कौन से माता-पिता अपनी लड़की को पढाना नहीं चाहते ?

नैतिकता समाज के लिए, अपने माता-पिता, अपने राष्ट्र के लिए आपके कर्त्तव्य कि मांग करती है | आप अगर स्वतंत्रता और स्वछंदता में विभेद नहीं कर पायेंगे तो आप किसी के लिए एक अच्छे भविष्य कि कल्पना नहीं कर सकते |

तू रस्मे-मोहब्बत को समझा ही नहीं वर्ना,
पाबंदिये-इंसां ही आज़दिये-इंसां है |

आज के परिवेश में इकबाल साहब और भी प्रासंगिक हो जाते हैं आशा है किइ हर एक भारतीय इसे हृदयंगम करेगा और अपनी संस्कृति व परम्परा पर नाज़ करेगा-

‘यूनान, मिश्र, रोमां सब मिट गए जहाँ से,
लेकिन अभी है बाकी नामों-निशाँ हमारा |
कुछ खास है के हस्ती मिटती नहीं हमारी,
गो कि रहा है दुश्मन दौरे-जहाँ हमारा |

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